two line shayari a hug collection 16 दो लाइन शायरी का अब तक का सबसे बड़ा संग्रह 16

किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मूँह में ज़बाँ क्यों हो
vedant thakur
24-05-2013, 11:50 PM
जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो अब राख जुस्तजू क्या है
vedant thakur
24-05-2013, 11:51 PM
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को
ये ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता
vedant thakur
24-05-2013, 11:51 PM
हां वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़ उसकी गली में जाए क्यों
bachchan paande
24-05-2013, 11:57 PM
शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ''शौक''
जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से।
मजा आ गया ----------
vedant thakur
28-05-2013, 10:16 AM
दिल धडकने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया !!
vedant thakur
29-05-2013, 03:54 PM
न ख्वाहिशें हैं न शिकवे हैं अब न ग़म हैं कोई;
ये बेख़ुदी भी कैसे कैसे ग़ुल खिलाती है!
fullmoon
30-05-2013, 11:32 PM
आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही खुदा देगा

जिंदगी को क़रीब से देखो, इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

- सुदर्शन फ़ाकिर
fullmoon
30-05-2013, 11:33 PM
सब कुछ झूठ है लेकिन फिर भी बिलकुल सच्चा लगता है

जानबूझकर धोखा खाना कितना अच्छा लगता है
fullmoon
30-05-2013, 11:34 PM
आपसे झुक के जो मिलता होगा

उसका क़द आपसे ऊँचा होगा

- नदीम क़ासमी
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:40 AM
हालात से तंग आकर ये सोचना पड़ता है,
कमज़र्फ़ के हाथों में क्यूँ इल्मो-हुनर आया।

[(कमज़र्फ़ = ओछा, नीच), (इल्मो-हुनर = शिक्षा एवं कला)]
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:40 AM
क्या पूछते हो हाल मेरे कारोबार का,
आईने बेचता हूँ अंधों के शहर में।
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:41 AM
जिन पत्थरों को हमने धड़कने अता कीं,
जब वो बोलने लगे तो हम पर बरस गए।
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:41 AM
अलफ़ाज़ गिरा देते हैं जज़्बात की क़ीमत
जज़्बात को लफ़्ज़ों में न ढाला करे कोई
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:42 AM
अँधेरे को उजाले का सुबह को रात का डर है,
जिन्होंने मूंद ली आखें उन्हें किस बात का डर है ?

बहुत सच बोलता है ये इसे जल्दी ज़हर दे दो,
सियासत को ज़माने में फ़क़त सुकरात का डर है।
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:43 AM
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह।
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:43 AM
मेरे अशआरों से ख़फ़ा हैं, कुछ दोस्त मेरे,
दुखती रगों पे, उँगलियाँ तो नहीं रख बैठा ?
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:44 AM
खुले लफ़्ज़ों में अपनी प्यास का इज़हार कर देंगे,
किसी दिन हम तेरे दरियाओं पे यलग़ार कर देंगे।

तेरा शेव: रहा है पीठ पर चाकू चलाने का,
मगर जब ज़ख्म हम देंगे, तुझे ललकार कर देंगे।


[(यलग़ार = आक्रमण, चढ़ाई). (शेव: = तरीका, ढंग, परिपाटी)]
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:45 AM
कैसे गुज़र रही है सभी पूछते हैं,
कैसे गुज़ारता हूँ कोई पूछता नहीं।
ajaythegoodguy
03-06-2013, 11:46 AM
ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है,
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है
(तस्कीन = तसल्ली, संतोष)
ajaythegoodguy
03-06-2013, 08:28 PM
तुझको खोकर क्यों ये लगता है कि कुछ खोया नहीं
ख़्वाब में आएगा तू, इस वास्ते सोया नहीं

आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं
ajaythegoodguy
03-06-2013, 08:56 PM
तुझसे मिलने को कभी हम जो मचल जाते हैं
तो ख़्यालों में बहुत दूर निकल जाते हैं

गर वफ़ाओं में सदाक़त भी हो और शिद्दत भी
फिर तो एहसास से पत्थर भी पिघल जाते हैं

उसकी आँखों के नशे में हैं जब से डूबे
लड़-खड़ाते हैं क़दम और संभल जाते हैं

बेवफ़ाई का मुझे जब भी ख़याल आता है
अश्क़ रुख़सार पर आँखों से निकल जाते हैं

प्यार में एक ही मौसम है बहारों का मौसम
लोग मौसम की तरह फिर कैसे बदल जाते हैं
umabua
03-06-2013, 11:34 PM
कोई सूरत नहीं है उसके जैसी
उसको देखो हज़ार में बैठा
उसको खुशियों से खौफ आता है
वहम क्या जहन-ए-यार में बैठा

-munir niyazi
ajaythegoodguy
04-06-2013, 11:59 AM
तस्वीर मैंने मांगी थी शोख़ी तो देखिये,
इक फूल उसने भेज दिया है गुलाब का।
ajaythegoodguy
04-06-2013, 05:49 PM
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके
(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)
CHHUPA RUSTEM
04-06-2013, 08:04 PM
तस्वीर मैंने मांगी थी शोख़ी तो देखिये,
इक फूल उसने भेज दिया है गुलाब का।
बहुत खूब मित्र!

मैँ जिसके हाथ मेँ इक फूल देके आया था।:):
उसी के हाथ का पत्थर मैरी तलाश मेँ है॥:(:

अज्ञात
ajaythegoodguy
04-06-2013, 08:08 PM
तूफानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

फूलों की दुकाने खोलो, खुशबू का व्यापार करो,
इश्क ख़ता है, तो ये ख़ता इक बार नहीं सौ बार करो
CHHUPA RUSTEM
04-06-2013, 09:42 PM
बहुत खूब तभी तो ये खता मैँ भी कर चुका हूँ जी
CHHUPA RUSTEM
04-06-2013, 10:19 PM
मोहब्बत मे हम तो जिए हैँ जिएंगे।
वो होँगे कोई और मर जाने वाले॥
अज्ञात
CHHUPA RUSTEM
05-06-2013, 10:25 AM
हर आदमी मेँ होते हैँ दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना|


निदा फाजली
fullmoon
05-06-2013, 11:55 PM
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा प्यारे पता करो लोहारों का
धार गिराना काम नहीं है लोहे पर सोनारों का
fullmoon
05-06-2013, 11:56 PM
अपने मंसूबों को नाकाम नहीं करना है

मुझको इस उम्र में आराम नहीं करना है
fullmoon
05-06-2013, 11:57 PM
अपना ग़म लेके कही और न जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए

- निदा फ़ाज़ली
fullmoon
05-06-2013, 11:58 PM
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूं

अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूं

- ख़लील धनतेजवी
fullmoon
05-06-2013, 11:59 PM
इस तरह कुछ आजकल अपना मुकद्दर हो गया

सर को चादर से ढंका तो पाँव बाहर हो गया
fullmoon
06-06-2013, 12:00 AM
उनके अंदर भी कहीं तू है, कहीं तू न गिरे

बस यही सोच के इन आँखों से आँसू न गिरे

- कुंअर बेचैन
umabua
06-06-2013, 12:35 AM
गम इस कदर बढे कि मैं घबरा के पी गया
इस दिल की बे बसी पे तरस खा के पी गया
ठुकरा रहा था मुझ को बड़ी देर से ज़माना
मैं आज सब जहां को ठुकरा के पी गया
........ साहिर लुधियानवी
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:04 AM
कुछ देर ठहर जाईये बंदा-ए-इन्साफ़
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूँढ रहे हैं
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:06 AM
दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:07 AM
पत्*थर के ख़ुदा पत्*थर के सनम पत्*थर के ही इंसां पाए हैं
तुम शहरे-मुहब्*बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं

बुतख़ाना समझते हो जिसको पूछो ना वहां क्*या हालत हैं
हम लोग वहीं से गुज़रे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहां
सहरा में खु़शी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस्*सुम हल्*का-सा आंखों में नमी सी है 'फ़ाकिर'
हम अहले-मुहब्*बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं

(अहले-मुहब्*बत = मुहब्बत करने वाले लोग)
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:08 AM
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:09 AM
किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ा-दारी नहीं होगी
हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:10 AM
अलफ़ाज़ गिरा देते हैं जज़्बात की क़ीमत
जज़्बात को लफ़्ज़ों में न ढाला करे कोई
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:11 AM
लश्कर भी तुम्हारा है सरदार तुम्हारा है
तुम झूठ को सच लिख दो, अखबार तुम्हारा है
हम इसकी शिकायत करते तो कहाँ करते
सरकार तुम्हारी है दरबार तुम्हारा है
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:12 AM
गले मिलने को आपस में दुआएं रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएं रोज़ आती हैं

अभी रोशन हैं चाहत के दिये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवाएं रोज़ आती हैं

कोई मरता नहीं है हाँ मगर सब टूट जाते हैं
हमारे शहर में ऎसी वबाएं रोज़ आती हैं

(वबाएं = महामारी, बीमारियाँ)

अभी दुनिया की चाहत ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा
अभी मुझको बुलाने दाश्ताएं रोज़ आती हैं

(दाश्ताएं = रखैलें)

ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डला
मगर उम्मीद की ठंडी हवाएं रोज़ आती हैं
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:12 AM
न कत्ल करते हैं, न जीने की दुआ देते हैं,
लोग किस जुर्म की आखिर ये सज़ा देते है ।
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:14 AM
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं शोना
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:15 AM
दुश्वार काम था तेरे ग़म को समेटना
मैं ख़ुद को बाँधने में कई बार खुल गया

मिट्टी में क्यों मिलाते हो मेहनत रफ़ूगरों
अब तो लिबासे जिस्म का हर तार खुल गया
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:16 AM
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा,
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:17 AM
कभी तो आसमां से चाँद उतारे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक खूबसूरत शाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
ना जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
ajaythegoodguy
06-06-2013, 09:17 AM
कह दो हसरतों से कहीं और जा बसे, इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में,
उम्र-ए-दराज़ से मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में
umabua
07-06-2013, 10:50 AM
वो जिन का प्यार था नज़रों की कायनात कभी
करीब आ के वही दिल का शहर लूट गए
कहाँ कहाँ से समेटेगा वो हमें 'मोहसिन'
कि हम तो आईने की तरह टूट फूट गए
umabua
07-06-2013, 11:03 AM
मेरी आँखों के जादू से तुम नावाकिफ हो
मैं उसे पागल कर देती हूँ जिसपे मुझे प्यार आ जाए
umabua
11-06-2013, 12:01 PM
मस्त नज़रों से ख़ुद मेरा साकी
फिर पिलाए पिया करे कोई
शौक-ए-दीदार दिल में है ‘दर्शन’
आ भी जाए ख़ुदा करे कोई
umabua
11-06-2013, 12:08 PM
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालों
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है ‘फ़ाकिर’
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
umabua
11-06-2013, 12:09 PM
ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ मेरी आँख नम नहीं।

तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं।

अब ना खुशी की है खुशी
ग़म का भी तो अब ग़म नहीं।

मौत अगर चे मौत है
मौत से ज़ीस्त कम नहीं।

-firaq
umabua
11-06-2013, 12:10 PM
मैं भी इस दर्द की पुजारिन हूँ ये न मिलता तो कब की मर जाती
इसके इक-इक हसीन मोती को रात-दिन पलकों में पिरोया है

-noor devasi
fullmoon
12-06-2013, 07:57 PM
हर सपना किसी का पूरा नहीं होता !
कोई किसी के बिना अधूरा नहीं होता !!
जो रौशन करता हैं सब रातों को....!
वो चाँद भी तो हर रात पूरा नहीं होता !!
fullmoon
12-06-2013, 08:46 PM
वो दोस्ती हो मुहब्बत हो चाहे सोना हो
कसौटियों पे परखना ज़रूर पड़ता है

कभी जवानी से पहले कभी बुढ़ापे में
ख़ुदा के सामने झुकना ज़रूर पड़ता है

मुन्नवर राणा
fullmoon
12-06-2013, 08:49 PM
बड़े सलीक़े से यह कह के ज़िन्दगी गुज़री
हर एक शख़्स को मरना ज़रूर पड़ता है

हो चाहे जितनी पुरानी भी दुश्मनी लेकिन
कोई पुकारे तो रुकना ज़रूर पड़ता है

मुन्नवर राणा
umabua
12-06-2013, 11:56 PM
आप कुछ यूँ मेरे आइना-ए-दिल में आए
जिस तरह चाँद उतर आया हो पैमाने में

-salim gilani
umabua
12-06-2013, 11:57 PM
सता-सता के हमें अश्कबार करती है
तुम्हारी याद बहुत बेक़रार करती है
कनारे बैठ के जिसके किए थे कौल-ओ-क़रार
नदी वो अब भी तेरा इंतज़ार करती है

-wafa roomani
umabua
12-06-2013, 11:58 PM
ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए
किसी का नाम लूँ लब पे तुम्हारा नाम आए।

-tasleem faazli
umabua
12-06-2013, 11:59 PM
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो फिर बेनक़ाब आए

-faiz ahmed faiz
umabua
13-06-2013, 12:01 AM
पी जा अय्याम की तलख़ी को भी हँस के ‘नासिर’
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रखा है।

–nasir haquim

अय्याम = Life
तलख़ी = Bitternetss
umabua
13-06-2013, 12:03 AM
लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम बड़ी हसींन रात थी।

-sudarshan faaquir
umabua
13-06-2013, 12:04 AM
तू मेरे साथ न चल, ऐ मेरी रूह-ए-ग़ज़ल
लोग बदनाम न कर दें तू इरादों को बदल।

-hasrat jaipuri
Krish13
13-06-2013, 07:54 AM
यह हादिसे जो इक-इक कदम पै हाइल हैं,
खुद एक दिन तेरे कदमों का आसरा लेंगे।
जमाना अगर ची-ब-जबीं है तो क्या है,
हम इस इताब पै कुछ और मुस्कुरा लेंगे।
Krish13
13-06-2013, 07:57 AM
यह सब तस्लीम है मुझको मगर ऐ दावरे-मशहर,
मुहब्बत के सिवा जुर्मे-मुहब्बत की सजा क्या है।
Krish13
13-06-2013, 07:59 AM
बगैर इश्क खराबाते- जिन्दगी है तारीक,
अगर यह शम्ए-फरोजाँ नहीं तो कुछ भी नहीं।
Krish13
13-06-2013, 08:01 AM
दिले-महबूब काशाना हो जिसका
वह गम कितना हसीनो-नाजनीं है।
Krish13
13-06-2013, 08:03 AM
दिल गवारा नहीं करता शिकस्ते-उम्मीद,
हर तगाफुल पै नवाजिश का गुमां होता है।
Krish13
13-06-2013, 08:04 AM
तुमको खबर न हुई और जलके खाक हुआ,
वह दिल जो तेरी मुहब्बत का आशियाना था।
Krish13
13-06-2013, 08:06 AM
जहाँ छोड़ा था तेरी जुस्तजू ने,
सुना है जिन्दगी अब तक वहीं है।
Krish13
13-06-2013, 08:07 AM
जहाँ दुनिया निगाहें फेर लेगी,

वहाँ ऐ दोस्त तुमको हम मिलेंगे।
Krish13
13-06-2013, 08:10 AM
खिज्रे-मंजिल से कम नहीं ऐ दोस्त,
एक हमदर्द अजनबी का खुलूस।


= खिज्रे-मंजिल - मंजिल का रास्ता दिखाने वाला

= खुलूस - सच्चा प्यार
Krish13
13-06-2013, 08:11 AM
खिजां के बाद गुलशन में बहार आई तो है लेकिन,

उड़ा जाता है क्यों अहले-चमन का रंग क्या कहिए।
fullmoon
13-06-2013, 01:53 PM
एक टूटी हुई कश्ती का मुसाफ़िर हूँ मैं
हाँ निगल जाएगा एक रोज़ समुन्दर मुझको

ज़ख़्म चेहरे पे, लहू आँखों में, सीना छलनी,
ज़िन्दगी अब तो ओढ़ा दे कोई चादर मुझको
fullmoon
13-06-2013, 01:55 PM
अब मुनासिब है कि तुम काँटों को दामन सौंप दो
फूल तो ख़ुद ही किसी दिन सूखकर गिर जाएगा

इसलिये मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं
मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा
fullmoon
13-06-2013, 01:56 PM
शहर के शोर से घबरा के अगर भागोगे
फिर तो जंगल में भी वहशत नहीं रहने देगी

कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
fullmoon
13-06-2013, 01:58 PM
सफ़र का शौक़ भी कितना अजीब होता है
वो चेहरा भीगा हुआ आँसों में छोड़ आए

फिर उसके बाद वो आँखें कभी नहीं रोयीं
हम उनको ऐसी ग़लतफ़हमियों में छोड़ आए
fullmoon
13-06-2013, 01:59 PM
जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में छोड़ आए
हम आज उसको बड़ी उलझनों में छोड़ आए

जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिन्दों को फिर घोंसलों में छोड़ आए
ajaythegoodguy
13-06-2013, 02:01 PM
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये

आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये

ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये

ज़िन्दगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये
fullmoon
13-06-2013, 02:03 PM
हम तो एक अखबार से काटी हुई तसवीर हैं
जिसको काग़ज़ चुनने वाले कल उठा ले जायेंगे

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिये
माँ, हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
ajaythegoodguy
13-06-2013, 02:04 PM
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
umabua
13-06-2013, 02:07 PM
दिल मे तेरी जफ़ा को सहारा समझ लिया
गुज़री है यों भी हम पे मुसीबत कभी-कभी
दुनिया समझ न ले तेरे ग़म की नज़ाकतें
करता हूँ ज़ेर-ए-लब शिक़ायत कभी-कभी

-shazi
ajaythegoodguy
13-06-2013, 02:09 PM
वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझको,
मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई ।
ajaythegoodguy
13-06-2013, 06:09 PM
हवा के रुख़ पे रहने दो ये जलना सीख जाएगा
कि बच्चा लड़खड़ाएगा तो चलना सीख जाएगा
govind22
13-06-2013, 08:27 PM
मेरी आँखों के जादू से तुम नावाकिफ हो
मैं उसे पागल कर देती हूँ जिसपे मुझे प्यार आ जाए

तेरी याद हो जैसे गरीब की ग़ुरबत
बढती ही जा रही है , बढती ही जा रही है ......
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:31 PM
अब ये हम पर है कि उसको कौन-सा हम नाम दें,
ज़िन्दगी जंगल भी है और ज़िन्दगी मधुबन भी है

तोतली बोली में बच्चों से मैं बोला तो लगा,
चाहे कोई उम्र हो मुझमें, कहीं बचपन भी है
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:37 PM
मिटने वालों की वफ़ा का यह सबक़ याद रहे,
बेड़ियाँ पैर में हों, और दिल आज़ाद रहे ।
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:38 PM
मिले ख़ुलूस कहाँ ताजिरों की बस्ती में,
वफ़ा तरसती है शहरों में दोस्ती के लिए।

[(ख़ुलूस = सरलता और निष्कपटता), (ताजिर = व्यापारी, सौदागर)]
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:40 PM
मेरे शिकवों पे उस ने हंस कर कहा 'शोना'
किस ने की थी वफ़ा जो हम करते
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:41 PM
मेरे बाद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:41 PM
अहले दिल और भी हैं, अहले वफ़ा और भी हैं,
एक हम ही नहीं, दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:42 PM
हम ज़माने में यूँ ही बेवफा मशहूर हो गये,
हज़ारों चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते
ajaythegoodguy
13-06-2013, 08:47 PM
यूँ उठे आह इस गली से हम,
जैसे कोई जहाँ से उठता है ।

,,,,,,,,,,,,,,गुड नाईट दोस्तो
fullmoon
13-06-2013, 10:42 PM
हम परिन्दों की तरह उड़ के तो जाने से रहे
इस जनम में तो न बदलेंगे ठिकाना अपना

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
fullmoon
13-06-2013, 10:44 PM
आइनाख़ाने में रहने का ये इनआम मिला
एक मुद्दत से नहीं देखा है चेहरा अपना

धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के
हम समझते थे कि काम आएगा बेटा अपना
fullmoon
13-06-2013, 10:45 PM
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ

कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
umabua
13-06-2013, 11:52 PM
कौन जाने क्या तमाशा है कि हादी के बग़ैर
इक हुजूम-ए-नगमदीर दिल के दवाखाने में है
बैठै-बैठै ख़ुद मुझे होता है अक्सर ये गुमाँ
नगमगर मुतरिब कोई दिल के तलबखाने में है
ajaythegoodguy
14-06-2013, 10:45 AM
जब मैंने उसे खास-निगाहे-नाज़ से देखा,
आईना फिर उसने नए अंदाज़ से देखा ।
ajaythegoodguy
14-06-2013, 10:49 AM
अभी तक दिल में रौशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू,
अभी इस राख में चिन्गारियां आराम करती हैं।
ajaythegoodguy
14-06-2013, 10:52 AM
कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी शहर के जलने के बाद आती है

न जाने कैसी महक आ रही है बस्ती में
वही जो दूध उबलने के बाद आती है

नदी पहाड़ों से मैदान में तो आती है
मगर ये बर्फ़ पिघलने के बाद आती है

ये झुग्गियाँ तो ग़रीबों की ख़ानक़ाहें हैं
क़लन्दरी यहाँ पलने के बाद आती है

[(ख़ानक़ाहें- आश्रम, मठ), (क़लन्दरी- फक्कड़पन)]

गुलाब ऎसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात काँटों पे चलने के बाद आती है

शिकायतें तो हमें मौसम-ए-बहार से है
खिज़ाँ तो फूलने-फलने के बाद आती है
ajaythegoodguy
14-06-2013, 11:14 AM
गले मिलने को आपस में दुआएं रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएं रोज़ आती हैं

अभी रोशन हैं चाहत के दिये हम सबकी आँखों में
बुझाने के लिये पागल हवाएं रोज़ आती हैं

कोई मरता नहीं है हाँ मगर सब टूट जाते हैं
हमारे शहर में ऎसी वबाएं रोज़ आती हैं

(वबाएं = महामारी, बीमारियाँ)

अभी दुनिया की चाहत ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा
अभी मुझको बुलाने दाश्ताएं रोज़ आती हैं

(दाश्ताएं = रखैलें)

ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डला
मगर उम्मीद की ठंडी हवाएं रोज़ आती हैं
ajaythegoodguy
14-06-2013, 11:19 AM
जो दरो-बाम की ज़ीनत है उन्हीं से मिलिये,
मैं तो बुनियाद का पत्थर हूँ नज़र क्या आऊँ।
ajaythegoodguy
14-06-2013, 11:21 AM
नुमाइश पर बदन की यूँ कोई तैयार क्यों होता
अगर सब घर के हो जाते तो ये बाज़ार क्यों होता
ajaythegoodguy
14-06-2013, 11:21 AM
इक ज़ख्मी परिंदे कि तरह जाल में हम हैं
ए इश्क अभी तक तेरे जंजाल में हम है
हंसते हुए होठों ने भरम रखा हमारा ,
वो देखने आया था किस हाल में हम है
ajaythegoodguy
14-06-2013, 11:23 AM
सो जाते हैं फुटपाथ पे अखबार बिछा कर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
Noctis Lucis
14-06-2013, 02:59 PM
कौन जाने क्या तमाशा है कि हादी के बग़ैर
इक हुजूम-ए-नगमदीर दिल के दवाखाने में है
बैठै-बैठै ख़ुद मुझे होता है अक्सर ये गुमाँ
नगमगर मुतरिब कोई दिल के तलबखाने में है

cant understand meaning
ajaythegoodguy
14-06-2013, 05:14 PM
मैं उन आंखों के मयख़ाने में थोड़ी देर बैठा था
मुझे दुनिया नशे का आज तक आदी बताती है
ajaythegoodguy
14-06-2013, 05:18 PM
कोयल बोले या गोरया अच्छा लगता हे
अपने गाव मे सब कुछ भईया अच्छा लगता हे
माया मोह बुडापे मे बड जाते हे
बचपन का तो एक रुपईया ही अच्छा लगता हे
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:33 PM
इतनी चाहत से ना देखा किजीये आप फ़ोरम पर
फ़ोरम वालो से हमारी दुश्मनी बड जायेगी
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:34 PM
बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है
सच होंठ पर लेकिन आता तो है।

तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,
है तय है ये रस्ता कहीं जाता तो है।

फिज़ाओं में यूँ ही नहीं है हलचल,
तीर चुपके से कोई चलाता तो है।

खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:40 PM
शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।
ख़ुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।

लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी ख़ातिर,
ख़ामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।

कह दे की नहीं है तू गहनों से सजा पत्थर,
आदमी के ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं।

पेटुओं के बीच कोई भूखा क्यों रहे,
अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।

झुग्गियाँ ही क्यों महल क्यों नहीं,
बाढ़ के रुख को मोड़ता क्यों नहीं।
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:43 PM
तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको
रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको

मेरी आँखों को वो बीनाई अता कर मौला
एक आँसू भी नज़र आए समंदर मुझको

आज तक दूर न कर पाया अँधेरा घर का
और दुनिया है कि कहती है 'मुनव्वर' मुझको

-मुनव्वर राना

1. बीनाई=देखने की शक्ति
2. मुनव्वर = प्रकाशमान, प्रज्ज्वलित
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:44 PM
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए
ajaythegoodguy
14-06-2013, 06:44 PM
चिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।

भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।
शायर वो क्या, क्या उनकी शायरी,
जो ख़ुद झूमती हुई ग़ज़ल नहीं होते।
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
आईने की प्रकृति में छल नहीं होते।
KAVI SAAHAB
15-06-2013, 12:34 AM
उठके कपडे बदल



उठके कपडे बदल, बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ
रात के बाद दिन, आज के बाद कल
जो हुआ सो हुआ

जब तलक सांस है, भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख काँधे पै हल, खेत की और चल
जो हुआ सो हुआ

खून से तर-ब-तर करके हर रहगुजर
थक चुके जानवर
लकड़ियों की तरह, फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ

जो मरा क्यों मरा, जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से है गुम, इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ

मंदिरों में भजन, मस्जिदों में अजां
आदमी है कहाँ????????????
आदमी के लिए एक ताजा गजल
जो हुआ सो हुआ


निदा फाजली
Noctis Lucis
15-06-2013, 08:05 PM
Sab mujhe kehte hai ki badal gaya hai tu.. Aab unhe kaun samajhaye.. Tute hue patte ka rang aksar badal hi jata hai.
Krish13
17-06-2013, 04:07 PM
तुम मुखातिब भी हो, सामने भी हो,

तुमको देखूँ कि तुमसे बात करूँ।
Krish13
17-06-2013, 04:08 PM
तुम उनके वादे का जिक्र उनसे क्यों करो 'गालिब',

ये क्या कि तुम कहो और वो कहें कि याद नहीं।
Krish13
17-06-2013, 04:10 PM
तबस्सुम उनके लब पर एक दिन वक्ते-इताब आया,

उसी दिन से हमारी जिन्दगी में इन्किलाब आया।
Krish13
17-06-2013, 04:12 PM
हमारे जमाने का दस्तूर यह है,

वही जीतते हैं जो खाते हैं मातें।

-अफसर मेरठी
tu gadha
17-06-2013, 06:08 PM
चलो कुछ दिन के लिए दुनिया छोड़ देते हें " फ़राज़ "
सुना हे लोग बहुत याद करते हें चले जाने के बाद
ajaythegoodguy
17-06-2013, 07:35 PM
अजय (भगवान से):
"हज़ारो की किस्मत तेरे हाथ में थी,
अगर पास कर देता तो क्या बात थी.."

भगवान :
"इश्क़ थोड़ा कम लड़ाता तो क्या बात थी,
किताबें भी तो सारी तेरे ही पास थी.."
ajaythegoodguy
17-06-2013, 07:47 PM
अर्ज़ किया है..


चली जाती है आए दिन वो ब्यूटी पार्लर में यूँ..
उनका मकसद है मिसाल-ए-हूर हो जाना..

मगर यह बात किसी बेगम की समझ में क्यूँ नहीं आती..
कि मुमकिन ही नहीं किसी किशमिश का फिर से अंगूर हो जाना..
tu gadha
18-06-2013, 12:30 PM
अजय (भगवान से):
"हज़ारो की किस्मत तेरे हाथ में थी,
अगर पास कर देता तो क्या बात थी.."

भगवान :
"इश्क़ थोड़ा कम लड़ाता तो क्या बात थी,
किताबें भी तो सारी तेरे ही पास थी.."




अर्ज़ किया है..



चली जाती है आए दिन वो ब्यूटी पार्लर में यूँ..
उनका मकसद है मिसाल-ए-हूर हो जाना..

मगर यह बात किसी बेगम की समझ में क्यूँ नहीं आती..
कि मुमकिन ही नहीं किसी किशमिश का फिर से अंगूर हो जाना..

दोनों अतिउत्तम हें :696:
dkj
18-06-2013, 07:39 PM
बहुत खूबसूरत मगर साँवली सी
dkj
18-06-2013, 07:41 PM
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर साँवली सी.......
dkj
18-06-2013, 07:41 PM
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंपकपा ती तो होंगी
कलाम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी

मेरा नाम फिर वो किताबों में लिखकर
दाँतों में उंगली दबाती तो होगी

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर साँवली सी.......
dkj
18-06-2013, 07:43 PM
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर

कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी

उसी नींद में कसमसा कसमसाकर

सराहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंप-कंपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी

मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी
जुबां से कभी उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीन पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
ajaythegoodguy
18-06-2013, 07:44 PM
यूँ देखिये तो आंधी में बस इक शजर गया,
लेकिन न जाने कितने परिन्दों का घर गया।

(शजर = वृक्ष, पेड़)
dkj
18-06-2013, 07:45 PM
ैसे यह फ़िल्म और यह गीत देश भर में लोकप्रिय रहा। गुलज़ार के लिखे बोलों को हल्के से शास्त्रीय पुट के साथ वसन्त देसाई ने सुरों में ढाला। रेडियो से जब भी सुनते लगता था पपीहे की गूँज आषाढ के मेघ और सावन की झड़ी सब वातावरण में फैल गए हो। सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था यह गीत पर अब तो लम्बे समय से सुना नहीं।

जितना मुझे याद आ रहा है यह गीत वो इस तरह है -



बोले रे पपीहरा
पपीहरा
बोले रे पपी ईईईई… हरा

पलकों पर एक बूँद सजाए
मैं चीखूँ सावन ले जाए
जाए मिले --------------
एक मन प्यासा एक घन बरसे
ए ए ए ए ए ए ए ए
बोले रे पपी ईईईई… हरा आ आ आ आ
बोले रे पपीहरा
पपीहरा
बोले रे पपी ईईईई… हरा

सावन तो संदेशा लाए
मेरी आँख से मोती पाए
जाए मिले --------------
एक मन प्यासा एक घन बरसे
ए ए ए ए ए ए ए ए
बोले रे पपी ईईईई… हरा आ आ आ आ
बोले रे पपीहरा
पपीहरा
बोले रे पपी ईईईई… हरा
dkj
18-06-2013, 07:47 PM
गाना / Title: कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की - kahii.n ek maasuum naazuk sii la.Dakii

चित्रपट / Film: Shankar Hussain

संगीतकार / Music Director: Khaiyyam

गीतकार / Lyricist: Kamal Amrohi

गायक / Singer(s): Rafi


देवनागरी बोल : Devanagari




कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा\-कसमसाकर
सरहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख़्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे\-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी

चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कँप\-कँपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उँगली दबाती तो होगी

ज़ुबाँ से अगर उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीं पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
ajaythegoodguy
18-06-2013, 07:49 PM
सच बात मान लीजिये चेहरे पे धूल है
इल्ज़ाम आइनों पे लगाना फ़िज़ूल है
dkj
18-06-2013, 07:50 PM
आगरे का लाला अंग्रेज़ी दुल्हन लाया
दिलीप कुमार की एक लोकप्रिय फ़िल्म है नया दौर जिसमें नायिका है वैजयंती माला जिसका एक गीत बहुत लोकप्रिय है -

रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
रूप सहा नही जाए नख़रे वाली का

एक ऐसा ही गीत किस्मत फ़िल्म का है जिसे भी हम बहुत सुनते है। इसमे नायक और नायिका विश्वजीत और बबिता है -

कजरा मोहब्बत वाला अखियों में ऐसा डाला
कजरे ने ले ली मेरी जान हाय रे मैं तेरे कुर्बान

इन दोनों ही गीतों को शमशाद बेगम और आशा भोसले ने गाया है। किस्मत फ़िल्म शायद साठ के दशक के अन्तिम वर्षो में रिलीज हुई थी और इसके शायद एक दो साल पहले ही रिलीज हुई थी फ़िल्म दस लाख।

फ़िल्म दस लाख में भी नायिका बबिता ही है और नायक है संजय। इस फ़िल्म में भी एक ऐसा ही गीत है। यह गीत विविध भारती समेत सभी स्टेशनों से पहले बहुत सुनवाया जाता था पर अब एक लंबा समय हो गया इस गीत को सुने हुए।

ये भी बड़ा मजेदार गीत है इसके अंतरे में मेरे महबूब फ़िल्म के लोकप्रिय गीत के मुखडे की पैरोडी भी है। इसमे आगरे के लाला है ओम प्रकाश और उनकी अन्ग्रेज़ी दुलहनिया है मनोरमा। गीत के जो बोल याद है वो है -

आगरे का लाला अंग्रेज़ी दुल्हन लाया रे
आगरे का लाला

सुबह सुबह उठ कर वो चाय भी बनाए
चाय भी बनाए अपने हाथों से पिलाए
ऐ हुस्न ज़रा जाग तुझे इश्क जगाए (मेरे महबूब की पैरोडी)
दीवाना तेरा लाया है इस टंकी में चाय
dkj
18-06-2013, 07:52 PM
नन्ही चीटीं दाना लेकर ऊपर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का उत्साह रगों में साहस भरता है
चदकर गिरना, गिरकर चढ़ना नही अखरता है
मेहनत उसकी खाली हर बार नही होती
कोशिश करने बालों की हार नही होती
ajaythegoodguy
18-06-2013, 07:53 PM
यह उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया
मैं इल्ज़ाम उस को देता था, क़ुसूर अपना निकल आया
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:05 PM
तेरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा,
कहीं ज़िन्दगी की बारिश कहीं क़त्ले-आम देखा।


(अंजुमन = सभा, महफ़िल), (एहतिमाम = व्यवस्था, प्रबंध, बंदोबस्त)
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:23 PM
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ

इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:38 PM
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िन्दगी एक नज़्म लगती है

बज़्मे-याराँ में रहता हूँ तन्हा
और तन्हाई बज़्म लगती है


[(बज़्मे-याराँ = दोस्तों की महफ़िल), (बज़्म = सभा, महफ़िल)]
alymax
18-06-2013, 08:43 PM
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ

इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ

आप कि रचना तारीफ काबिले तारिफ है
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:46 PM
आप कि रचना तारीफ काबिले तारिफ है

ये मेरी नही ये ये सब गुगल बाबा की महर्बानी हे
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:47 PM
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
ajaythegoodguy
18-06-2013, 08:54 PM
जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो,
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं।

(पशेमाँ = लज्जित, शर्मिंदा)
fullmoon
18-06-2013, 10:43 PM
अब भी रौशन है तेरी याद से घर के कमरे
रोशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको

चाहने वालों ने कोशिश तो बहुत की लेकिन
खो गया मैं तो कोई ढूँढ न पाया मुझको
fullmoon
18-06-2013, 10:45 PM
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

वो दुश्मन ही सही आवाज़ दे उसको मोहब्बत से
सलीक़े से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है
fullmoon
18-06-2013, 10:47 PM
वो नींद जो तेरी पलकों के ख़्वाब बुनती है
यहाँ तो धूप निकलने के बाद आती है

गुलाब ऎसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात काँटों पे चलने के बाद आती है
fullmoon
18-06-2013, 10:49 PM
बिछड़ा कहाँ है भाई हमारा सफ़र में है
ओझल नहीं हुआ है अभी तक नज़र में है

वह तो लिखा के लाई है क़िस्मत में जागना
माँ कैसे सो सकेगी कि बेटा सफ़र में है
dkj
18-06-2013, 11:34 PM
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
ajaythegoodguy
19-06-2013, 09:57 AM
मुसाफ़िर बे-ख़बर हैं तेरी आंखों से,
तेरे शहर में चाय की दुकान ढूंढते हैं ।
ajaythegoodguy
19-06-2013, 10:00 AM
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो

दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो

अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो

चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
ajaythegoodguy
19-06-2013, 10:01 AM
वो रुलाकर हँस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक

भूलना चाहा अगर उस को कभी
और भी वो याद आया देर तक

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक

गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर
धूप रहती है ना साया देर तक
fullmoon
20-06-2013, 12:20 PM
बेचैनियाँ समेटकर सारे जहान की,
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।
fullmoon
20-06-2013, 12:21 PM
अंधेरे माँगने आये थे रौशनी की भीख,
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?
fullmoon
20-06-2013, 12:23 PM
कुछ मेरे बाद और भी आयेंगे काफिले वाले,
कांटे यहाँ रास्ते से हटालूँ तो चैन लूं।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 03:01 PM
तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों,
अब हो चला यक़ीं कि बुरे हम हैं दोस्तों ।

(बरहम = नाराज़)
ajaythegoodguy
20-06-2013, 03:03 PM
शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते है,
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते है।

हम तो बेनाम इरादों के मुसाफ़िर हैं 'वसीम',
कुछ पता हो, तो बतायें कि किधर जाते हैं।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 03:05 PM
उधर इस्लाम ख़तरे में, इधर है राम ख़तरे में,
मगर मैं क्या करूँ, है मेरी सुबहो-शाम ख़तरे में।

वो ग़म वाले से बम वाले हुए उनको पता क्यूँ हो,
के मुश्किल में मेरी रोटी, है मेरा जाम ख़तरे में।

ये क्या से क्या बना डाला है हमने मुल्क को अपने,
कहीं हैरी, कहीं हामिद, कहीं हरनाम ख़तरे में।

ग़ज़लगोई, ये अफ़साने, रिसाले और तहरीकें,
किताबत, सचकलामी, हाय सारे काम ख़तरे में।


(रिसाला = पत्र, पुस्तकें), (तहरीक = आंदोलन/ प्रस्ताव), (किताबत = लिखना)

न बोलो सच ज़ियादा 'नूर' वर्ना लोग देखेंगे,
तुम्हारी जान जोख़िम में तुम्हारा नाम ख़तरे में।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 03:07 PM
दालानों की धूप छतों की शाम कहाँ,
घर के बाहर घर जैसा आराम कहाँ।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 03:16 PM
चल-चल के रुके, रुक-रुक के चले जो दिल ने कहा, वो हमने किया
सबकी मानी पर शाम ढले जो दिल ने कहा, वो हमने किया
tu gadha
20-06-2013, 05:07 PM
प्यार तेरा भुला ना पाएंगे
हम हें परदेसी लौट जाएंगे
ख़त तो तेरे जला दिये हमने
तेरी यादों को खुद से कहाँ छुपाएंगे
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:09 PM
है अजीब शहर की ज़िन्दगी, न सफ़र रहा न क़याम है,
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है।

(क़याम = ठौर-ठिकाना, विश्राम स्थल)
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:11 PM
प्यार तेरा भुला ना पाएंगे
हम हें परदेसी लौट जाएंगे
ख़त तो तेरे जला दिये हमने
तेरी यादों को खुद से कहाँ छुपाएंगे

यूँ ही रोज़ मिलने की आरजू बड़ी रखरखाव की गुफ़्तगू,
ये शराफ़तें नहीं बे ग़रज़, उसे आपसे कोई काम है।

(गुफ़्तगू = चर्चा, बातचीत, वार्तालाप)
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:11 PM
न उदास हो, न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर,
कई साल बाद मिले हैं हम, तेरे नाम आज की शाम है।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:12 PM
कोई नग़मा धूप के गाँव सा, कोई नग़मा शाम की छाँव सा,
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:13 PM
चाँद है ज़ेरे क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया

शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया

ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया

यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया

अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया
tu gadha
20-06-2013, 05:13 PM
जिस घड़ी तेरी यादों का समय होता हे
दिल को चैन कहाँ होता हे
हौसला नहीं तुझे भुला देने का
ये काम तो सदियों का हे , लम्हों मे कहाँ होता हे
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:14 PM
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

[(रफ़ीक़ = मित्र, हमराही), (ता-हद्द-ए-नज़र = जहाँ तक नज़र जा सके)]

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है

(ज़ूद-ए-पशेमान = अपनी भूल पर बहुत जल्दी पछताने वाला)

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
tu gadha
20-06-2013, 05:15 PM
ये क्या की चंद ही क़दमो मे थक के बैठ गए
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:15 PM
जिस घड़ी तेरी यादों का समय होता हे
दिल को चैन कहाँ होता हे
हौसला नहीं तुझे भुला देने का
ये काम तो सदियों का हे , लम्हों मे कहाँ होता हे

तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया
वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़ुज़ूल गया
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:17 PM
उसे रोकता भी तो किस तरह के वो शख़्स इतना अजीब था
कभी तड़प उठा मेरी आह से कभी अश्क़ से न पिघल सका
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:18 PM
इक समंदर है जो मेरे काबू में है,
इक क़तरा है कि मुझसे संभलता नहीं
इक उम्र है जो बितानी है उनके बगैर,
और इक लम्हा है कि गुज़रता नहीं
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:19 PM
वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझको,
मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई ।
tu gadha
20-06-2013, 05:20 PM
हसरतों की निगाहों पे सख्त पहरा हे
ना जाने किस उम्मीद पे ये दिल ठहरा हे
तेरी कसम दोस्त अपनी दोस्ती का रिश्ता
प्यार से भी गहरा हे
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:24 PM
ये ज़िन्दगी का मुसाफ़िर, ये बेवफ़ा लम्हा,
चला गया, तो कभी लौटकर न आएगा ।

अपने अंधेरों का ख़ुद इलाज करो,
कोई चराग़ जलाने इधर न आयेगा ।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 05:26 PM
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में ख़ुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता

न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता

(आलम ज़ेरे-पा = दुनिया/ संसार पैरों के नीचे)
DIWANA DON
20-06-2013, 06:14 PM
ये ज़िन्दगी का मुसाफ़िर, ये बेवफ़ा लम्हा,
चला गया, तो कभी लौटकर न आएगा ।

अपने अंधेरों का ख़ुद इलाज करो,
कोई चराग़ जलाने इधर न आयेगा ।


न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में ख़ुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता

न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता

(आलम ज़ेरे-पा = दुनिया/ संसार पैरों के नीचे)


वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझको,
मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई ।


क्या अज्जु .........क्या बात है आप भी शायर
ajaythegoodguy
20-06-2013, 07:00 PM
क्या अज्जु .........क्या बात है आप भी शायर

घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता

(तज़किरा = चर्चा, ज़िक्र)
ajaythegoodguy
20-06-2013, 07:02 PM
बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता

तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लौट गए
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता
Krish13
20-06-2013, 07:37 PM
वाह वाह क्या बात है अज्जु बाबा...........
ajaythegoodguy
20-06-2013, 07:42 PM
ये बात समझ में आई नही,
और मम्मी ने समझाई नही..

मैं कैसे मीठी बात करू,
जब मीठी चीज़ कोई खाई नही..

ये चाँद कैसे मामू है,
जब मम्मी का वो भाई नही..

क्यूँ लंबे बॉल हैं भालू के,
क्यूँ उसने कटिंग कराई नहीं..

क्या वो भी गंदा बच्चा है,
या जंगल में कोई नाई नहीं..

नाना की बीवी जब नानी है,
दादा की बीवी जब दादी है,
पापा की बीवी क्यूँ पापी नहीं..

समुंदर का रंग क्यूँ नीला है,
जब नील किसी ने मिलाई नहीं..

जब स्कूल में इतनी नींद आती है,
तो बेड वहाँ क्यू रखवाई नहीं..

ये बात समझ में आई नहीं,
और मम्मी ने समझाई नहीं..!
Krish13
20-06-2013, 08:08 PM
तबस्सुम उनके लब पर एक दिन वक्ते-इताब आया,

उसी दिन से हमारी जिन्दगी में इन्किलाब आया।
Krish13
20-06-2013, 08:08 PM
तबस्सुम उनके लब पर एक दिन वक्ते-इताब आया,

उसी दिन से हमारी जिन्दगी में इन्किलाब आया।
Krish13
20-06-2013, 08:09 PM
इश्क खुद खानुमा-खराब सही,

मगर जिन्दगी की पनाह है प्यारे।
Krish13
20-06-2013, 08:12 PM
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम,

जाते रहे हम जान से, आते ही रहे तुम।
Krish13
20-06-2013, 08:13 PM
फिर वही शाम , वही गम , वही तन्हाई है,

दिल को समझाने तेरी याद चली आई है।
Krish13
20-06-2013, 08:14 PM
शाखों से टूट जायें वह पत्ते नहीं हैं हम,

आंधी से कोई कह दे औकात में रहे।
Krish13
20-06-2013, 08:15 PM
बेसबब होती नहीं रूसवाइयां,

कुछ हकीकत थी तो अफसाने बने।
Krish13
20-06-2013, 08:17 PM
आप जिस वक्त दिल में होते हैं,

दिल की दुनिया जमील होती है।

= जमील - सुन्दर
Krish13
20-06-2013, 08:19 PM
शबे-गम किस तरह गुजरी, शबे-गम इस तरह गुजरी,

न तुम आये, न चैन आया, न मौत आई न ख्वाब आया।

= शबे-गम - विरह की रात
Krish13
20-06-2013, 08:20 PM
वादिए-उल्फत में देखी हमने कब मंजिल की शक्ल,
गिर पड़े, गिरकर उठे, उठकर संभलते ही रहे।
Krish13
20-06-2013, 08:22 PM
वह नादिम हुए कत्ल करने के बाद,

मिली जिन्दगी मुझको मरने के बाद।

= नादिम - लज्जित, शर्मिन्दा
Krish13
20-06-2013, 08:25 PM
मुझसे मिलना और आप का मिलना,
दिन यह किसको नसीब होते है,

वह बड़े खुशनसीब होते हैं, आप जिनके हबीब होते हैं।
Krish13
20-06-2013, 08:30 PM
आप हो, मय हो, खल्वत हो, दिन ये किसको नसीब होते है

जुल्म करते हैं और मुकरते हैं, ये हसीं भी अजीब होते हैं।
Krish13
20-06-2013, 08:30 PM
आप हो, मय हो, खल्वत हो, दिन ये किसको नसीब होते है

जुल्म करते हैं और मुकरते हैं, ये हसीं भी अजीब होते हैं।
Krish13
20-06-2013, 08:32 PM
खुदा के डर से हम तुमको खुदा कह नहीं सकते,

मगर लुत्फे-खुदा, कहरे-खुद शाने-खुदा तुम हो।
Krish13
20-06-2013, 08:34 PM
असीराने-कफस को वास्ता क्या इन झमेलों से,

चमन में कब खिजां आई, चमन में कब बहार आई।

= असीराने–कफस = पिंजरे में बंद
Krish13
20-06-2013, 08:36 PM
अदा आई, जफा आई, गरूर आया, इताब आया,

हजारों आफतें लेकर हसीनों का शबाब आया।
Krish13
20-06-2013, 08:38 PM
उसी को जिसने न की भूलकर भी बात कभी,

बगैर याद किये कट न सकी एक रात कभी।
Krish13
20-06-2013, 08:39 PM
अश्क बनकर आई हैं वह इल्तिजाएं चश्म तक,

जिनको कहने के लिए होठों पे गोयाई नहीं।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 08:58 PM
मेरी ज़ुबाँ से मेरी दास्ताँ सुनो तो सही
यक़ीं करो न करो मेहरबाँ सुनो तो सही

चलो ये मान लिया मुजरिमे-मोहब्बत हैं
हमारे जुर्म का हमसे बयाँ सुनो तो सही

बनोगे दोस्त मेरे तुम भी दुश्मनों एक दिन
मेरी हयात की आह-ओ-फ़ुग़ाँ सुनो तो सही

लबों को सी के जो बैठे हैं बज़्मे-दुनिया में
कभी तो उनकी भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही

कहोगे वक़्त को मुजरिम भरी बहारों में
जला था कैसे मेरा आशियाँ सुनो तो सही
ajaythegoodguy
20-06-2013, 08:59 PM
ज़र का, ज़रूरतों का, ज़माने का, दोस्तों
करते तो हम भी हैं मगर इतना अदब नही

(ज़र = धन)

दुनिया से क्या शिकायतें, लोगों से क्या गिला
हमको ही ज़िन्दगी से निभाने का ढब नहीं
ajaythegoodguy
20-06-2013, 09:00 PM
दोस्तों के करम कहाँ जाते,
हम न होते तो ग़म कहाँ जाते।
बादा ख़ानों ने लाज रख ली है,
वरना दैर ओ हरम कहाँ जाते।
ajaythegoodguy
20-06-2013, 09:01 PM
हवाओं के पाँव में ज़ंजीर देखे,
बहुत दिन हुए तेरी तस्वीर देखे ।

दोस्त है गर तो सीने से लग जाए मेरे,
मेरा दुश्मन है तो अपनी शमशीर देखे ।


(शमशीर = तलवार)
ajaythegoodguy
20-06-2013, 09:02 PM
तहसीन के लायक तिरा हर शेर है
अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक ।


[(तहसीन = प्रशंसा), (अहबाब = दोस्त, मित्र), (बज़्म = महफ़िल, सभा)]
ajaythegoodguy
20-06-2013, 09:02 PM
बेजुस्तजू मिलेगा न ऐ दिल, सुराग़-ए-दोस्त,
तू कुछ तो क़स्द कर, तेरी हिम्मत को क्या हुआ।


[(बेजुस्तजू = बिना प्रयत्न), (सुराग़-ए-दोस्त = मित्र का पता), (क़स्द = प्रयत्न)]
KAVI SAAHAB
27-06-2013, 11:23 PM
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफिर नें समंदर नहीं देखा l
बेवक्त आऊंगा सब चौंक पड़ेंगे,
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा l
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है,
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा l
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिलें हैं,
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा l
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा ll


बशीर बद्र
umabua
04-07-2013, 11:37 AM
जवानी की जलती हुई दोपहर में
ये ज़ुल्फ़ों के साये घनेरे-घनेरे
अजब धूप छाँव का आलम है तारी
महकता उजाला चमकते अँधेरे

-Himayat Ali Shaer
umabua
04-07-2013, 11:45 AM
ख़ुद अपने हाथ से ‘शहज़ाद’ उसे काट दिया
कि जिस दरख़्त के तनहाई पे आशियाना था।

Farhat Shahjad
fullmoon
08-07-2013, 10:22 PM
राई के दाने बराबर भी न था जिसका वजूद
नफ़रतों के बीच रह कर वह हिमाला हो गया

शहर को जंगल बना देने में जो मशहूर था
आजकल सुनते हैं वो अल्लाह वाला हो गया
fullmoon
08-07-2013, 10:26 PM
इस वास्ते जी भर के उसे देख न पाए
सुनते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी

उस शहर में जीने की सज़ा काट रहा हूँ
महफ़ूज़ नहीं है जहाँ अल्लाह का घर भी
fullmoon
08-07-2013, 10:28 PM
एक टूटी हुई कश्ती का मुसाफ़िर हूँ मैं
हाँ निगल जाएगा एक रोज़ समुन्दर मुझको

ज़ख़्म चेहरे पे, लहू आँखों में, सीना छलनी,
ज़िन्दगी अब तो ओढ़ा दे कोई चादर मुझको
fullmoon
08-07-2013, 10:29 PM
मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देता
आपका ग़म मुझे तन्हा नहीं रहने देता

ग़म से लछमन के तरह भाई का रिश्ता है मेरा
मुझको जंगल में अकेला नहीं रहने देता
fullmoon
08-07-2013, 10:32 PM
अब मुनासिब है कि तुम काँटों को दामन सौंप दो
फूल तो ख़ुद ही किसी दिन सूखकर गिर जाएगा

इसलिये मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं
मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा
ajaythegoodguy
09-07-2013, 01:19 PM
देखकर दिलकशी ज़माने की,
आरज़ू है फ़रेब खाने की ।

ऐ ग़मे ज़िन्दगी न हो नाराज़,
मुझको आदत है मुस्कुराने की ।

ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में,
रौशनी है शराबखाने की ।

(ज़ुल्मतों से = अंधेरों से)
ajaythegoodguy
09-07-2013, 01:29 PM
हिमालय दर्द का है पर पिघलने ही नहीं देती,
किसी भी ग़म की आंधी को सँभलने ही नहीं देती।
मुझे मालूम है मुझको सफ़र में कुछ नहीं होगा,
बिना चूमे मेरा सर माँ , निकलने ही नहीं देती।
umabua
09-07-2013, 01:30 PM
ज़िन्दगी सिर्फ तेरे नाम से मन्सूब रहे
जाने कितने ही दिमागों ने ये सोचा होगा
दोस्त हम उसको ही पैगाम-ए-करम समझेंगे
तेरी फुरकत का जो जलता हुआ लम्हा होगा

मन्सूब = सम्बंधित
पैगाम-ए-करम = कृपा सन्देश
फुरकत = अलगाव/विछोह
-अब्बास 'दाना'
ajaythegoodguy
09-07-2013, 01:30 PM
बचपन से तो ग़म खाए हैं, नयनों का जल पीते हैं,
किश्तों किश्तों रोज़ मरे हम टुकड़ा टुकड़ा जीते हैं |
लम्हा लम्हा दिन कटते हैं,पल पल युग सा बीता है,
शिव ने तो इक बार पिया ,हम रोज़ हलाहल पीते हैं|
umabua
09-07-2013, 01:34 PM
दामन-ए-जीस्त में अब कुछ भी नहीं है बाकी
मौत भी आयी तो यकीनन उसे धोखा होगा

दामन-ए-जीस्त = जीवन रूपी वस्त्र
-अब्बास 'दाना'
ajaythegoodguy
09-07-2013, 01:35 PM
किस शौक़, किस तमन्ना, किस दर्जा सादगी से,
हम आपकी शिकायत करते हैं आप ही से ।
umabua
09-07-2013, 01:42 PM
हम कि तूफानों के पाले भी सताए भी हैं
बर्क-ओ-बारां में वो ही शमा जलाएं कैसे
ये जो आतिश बडा दुनिया में भड़क उठा है
आँसुओं से हर बार उसे बुझायें कैसे

बर्क-ओ-बारां = बिजली और तूफ़ान
आतिश बडा = बड़ी भयानक आग

-आले अहमद सुरूर
fullmoon
09-07-2013, 11:55 PM
हिमालय दर्द का है पर पिघलने ही नहीं देती,
किसी भी ग़म की आंधी को सँभलने ही नहीं देती।
मुझे मालूम है मुझको सफ़र में कुछ नहीं होगा,
बिना चूमे मेरा सर माँ , निकलने ही नहीं देती।

खूबसूरत पंक्तियाँ...
इसकी पूरी गज़ल हो तो पोस्ट कीजियेगा
ajaythegoodguy
10-07-2013, 11:05 AM
रहे सदा जीवनभर जग में, तुम मेरी पहचान पिता,
कहाँ चुका पातीं जीवनभर,इस ऋण को संतान पिता ।

चले तुम्हारी अंगुली थामे , हम पथरीली राहों पर,
बिना तुम्हारे वो सब रस्ते,रह जाते अनजान पिता ।

मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था,
मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते लुकमान पिता ।

गुरु ,जनक, पालक,पोषक,रक्षक तुम भाग्यविधाता भी,
मोल तुम्हारा जान न पाए , हम ऐसे नादान पिता ।

अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।

तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे,
बिना तुम्हारे माँ के संग हम, रो-रो कर हलकान पिता ।

जिनके कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे,
अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, छोड़ आये शमशान पिता ।
ajaythegoodguy
10-07-2013, 11:09 AM
खूबसूरत पंक्तियाँ...
इसकी पूरी गज़ल हो तो पोस्ट कीजियेगा


शुक्रिया मुन जी पर मेरे पास इतनी ही हे
umabua
10-07-2013, 11:33 AM
दर-ए-यजदा पे भी झुकती नहीं इस वक्त जबीं
मुझ से आँखें न लड़ा, आज की रात
मशाल-ए-शेर का लाया हूँ चढ़ावा "आबिद"
जगमगाते हैं शहीदों के मज़ार आज की रात

यजदा - दया की देवी/देवता
जबीं - माथा(मस्तक)
umabua
11-07-2013, 11:40 AM
नाम उनका न कोई उनका पता
लोग जो दिल में रहा करते हैं
हमने 'राही' का चलन सीखा है
हम अकेले ही चला करते हैं

-SAYEED RAHI
KAVI SAAHAB
15-07-2013, 04:54 PM
ये रात ये तन्हाई
ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा

ये डूबते तारों की
खामोश ग़ज़ल-कहानी
ये वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानी
जज़्बात-ए-मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई

सब तुम को बुलाते हैं
पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में
मुहब्बत का
इक ख़्वाब सजा जाओ



मीना कुमारी
gangu teli
15-07-2013, 04:58 PM
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ नहीं .............अँगूठी हाथ में रहती है , मँगनी टूट जाती है .............कभी एक गर्म आँसू काट देता है चट्टानोँ को ,कभी एक मोम के टुकड़े से छैनी टूट जाती है !!!
KAVI SAAHAB
15-07-2013, 05:12 PM
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ नहीं .............अँगूठी हाथ में रहती है , मँगनी टूट जाती है .............कभी एक गर्म आँसू काट देता है चट्टानोँ को ,कभी एक मोम के टुकड़े से छैनी टूट जाती है !!!

हु हु हु हु

:बुक्का फाड़कर रोने वाली स्माइली:
gangu teli
18-07-2013, 06:15 PM
अपने किरदार को मौसम से बचाएं रखना .............
लौट के फुल में वापस नहीं आती है खुशबु !!! "परवीन शाकिर"
KAVI SAAHAB
20-07-2013, 05:29 PM
वा वा वा वा क्या बात है जनाब <<<<<<<<
umabua
21-07-2013, 11:50 AM
कभी आंसू, कभी खुशी बेची
हम गरीबों ने बे-कसी बेंची
चन्द साँसे खरीदने के लिए
रोज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेची
umabua
21-07-2013, 11:57 AM
जब रुलाने लगे मुझे साए
मैंने उकता के रोशनी बेची
एक हम थे कि बिक गए खुद ही
वरना दुनिया ने दोस्ती बेची
Aarav switch
29-07-2013, 10:41 PM
गुजरती रात को यू जाया ना कर स्विचू ...... मौत माफी मांगने की मौहलत नही देती ...
umabua
07-08-2013, 02:19 PM
ज़िन्दगी तुझ से मिल कर ज़माना हुआ
आ तुझे आज हम मयकदे ले चलें
रात के नाम होंठों के सागर लिखें
अपनी आँखों में कुछ रतजगे ले चलें
(ज़ुबैर रिज़वी)
Kamal Ji
07-08-2013, 06:47 PM
नीरज जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं:

मैं वही हूँ जिसे वरदान फरिश्तों का समझ
तुमने औढ़ा था किसी रेशमी आँचल की तरह
और हंस हंस के प्यार को जिसके तुमने
अपनी आँखों में रचा था कभी काजल की तरह.

याद शायद हो तुम्हें गोद में मेरी छुप कर
तुम ज़मीं क्या, फ़लक तक से नहीं डरती थीं
और माथे पे सजा कर मेरे होंठों के कँवल
खुद को तुम मिस्र की शहजादी कहा करती थी.
Kamal Ji
07-08-2013, 06:48 PM
ख़्वाबों का इक जहां मुझे दे गया कोई
मिट्टी का इक मकां मुझे दे गया कोई

वो दिल में रह गया है कि दिल से उतर गया
कितना अजाब गुमां, मुझे दे गया कोई

सेहरा पे अपने घर का पता लिख गया था वो
मिटता हुआ निशां, मुझे दे गया कोई

माह-ओ-नजूम नोच के, सूरज बुझा दिया
फिर सारा आसमां, मुझे दे गया कोई

किश्ती में छेद उसने किया और उसके बाद
कागज़ का बादबां, मुझे दे गया कोई

उसने गुलाब हाथ में ले कर कहा बतूल
खुशबू का तर्जुमाँ, मुझे दे गया कोई
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:45 AM
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।

गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:54 AM
कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी शहर के जलने के बाद आती है

न जाने कैसी महक आ रही है बस्ती में
वही जो दूध उबलने के बाद आती है

नदी पहाड़ों से मैदान में तो आती है
मगर ये बर्फ़ पिघलने के बाद आती है

ये झुग्गियाँ तो ग़रीबों की ख़ानक़ाहें हैं
क़लन्दरी यहाँ पलने के बाद आती है

[(ख़ानक़ाहें- आश्रम, मठ), (क़लन्दरी- फक्कड़पन)]

गुलाब ऎसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात काँटों पे चलने के बाद आती है

शिकायतें तो हमें मौसम-ए-बहार से है
खिज़ाँ तो फूलने-फलने के बाद आती है
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:55 AM
दो तुन्द हवाओं पर बुनियाद है तूफां की,
या तुम न हसीं होते या मैं न जवां होता।
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:56 AM
हुस्न तो है ही करो लुत्फ़े-ज़ुबां भी पैदा,
'शोना' को देखो कि सब लोग भला कहते हैं
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:57 AM
तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई ज़रुरत ही नहीं शोना बनने सँवरने की ।


(आराइश = श्रृंगार)
ajaythegoodguy
29-08-2013, 08:59 AM
हर अदा गोया पयामे ज़िन्दगी देती हुई,
सुबह तेरे हुस्न में अंगड़ाइयाँ लेती हुई !
Aayushi.
02-10-2013, 01:29 PM
भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ।
तेरी नज़र के सामने खोये कहाँ कहाँ।
DIWANA DON
02-10-2013, 02:16 PM
सूत्र के सफल 4थे शतक की बहुत बहुत बधाई , दिल से
KAVI SAAHAB
02-10-2013, 09:42 PM
अड़े जीजाब के शेर हैं जनाब >>>>>

400 पेज की बधाई हो <<<<<<<<<<<<<<<<<
Gajanrana362436
05-10-2013, 06:38 AM
wah shrimaan...tariff karne ke liye shabd nahi hai mere pass....mahan log hain yhn (superlike)
madhup30
08-10-2013, 12:57 PM
जहनो नजर मे हरदम मंझील ही क्यू रहे
जबतक है सफर में ; सफर का मजां तो ले
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